सोमवार, 30 मई 2016

नींद चिरैया





पल में फुदक-फुदक उड़ जाती,  
'छुटकू जी की नींद चिरैया ।

पलकों के आँगन में 
जैसे-तैसे तो वह आती है
हुई जरा सी भी आहट तो 
फुर्र से उड जाती है ।
फिर वो हाथ कहाँ आती है.
चम चम चमकें नैन तरैया
छुटकू जी की नीद चिरैया
 
हवा अरी ओ धीरे आना
फूलों से भी ना बतियाना
नन्हे राजा जब तक सोएं,
बस मीठी सी लोरी गाना.
धीरे लहर लहर लहराना ।
लहराए ज्यों आँचल मैया
छुटकू जी की नींद चिरैया ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. पितामही का कितना वात्सल्य इन कोमल भावों में समाया है -बस अनुभव ही किया जा सकता.

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  2. दीदी, आपके इस गीत को 'सुनते' हुए
    "धीरे से आजा री अँखियन में, निंदिया आ जा री आजा!" गीत याद हो आया और ओशो की बात पर संदेह पैदा हो गया! ओशो कहते हैं कि एक नींद बोरियत का परिणाम होती है, जैसे किसी बेकार लेक्चर को सुनते हुए नींद आने लगती है, वैसे ही नन्हा शिशु भी बेतुकी लोरियाँ सुनकर सो जाता है! ओशो ने आपकी ये लोरी नहीं सुनी, वरना आपको अपवाद की श्रेणी में रखते!
    आपका खोया बचपन लौटा है, समेट लीजिये बाहों में!

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  3. ओशो की बात पर आपने सही सवाल उठाया है .मैंने पाया है कि तन्मयता से गाए गीतों को ही बच्चे ध्यान से सुनते हैं और सोते हैं अन्यथा नही .

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